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डोरस्टेप को और भी अनोखी सेवा बनाएंगे गोपाल मोहन

 
दिल्ली में सरकारी सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी की क्रांतिकारी योजना सफलतापूर्वक लागू हो चुकी है। फिलहाल 40 तरह की सरकारी सेवाएं घर बैठे मिल रही हैं। अन्य राज्यों के नागरिक जिन मामूली कामों के लिए सरकारी कार्यालयों में धक्के खाने को मजबूर हैं, वैसे कामों के लिए दिल्ली वालों को अब सिर्फ एक फोन करना ही काफी है।

लेकिन गोपाल मोहन के लिए यह शुरूआत भर है। उनके सपनों की आदर्श डोरस्टेप डिलीवरी योजना में कई नए आयाम जुड़ेंगे।

दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई यह क्रांतिकारी एवं अनूठी योजना गोपाल मोहन के दिमाग की उपज है। उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के बतौर अपनी यात्रा 2009 में अरविंद केजरीवाल के साथ शुरू की थी। उस वक्त गोपाल मोहन आइआइटी दिल्ली में पढ़ रहे थे। सूचना का अधिकार पर एक कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल आए। गोपाल मोहन से संपर्क का सिलसिला शुरू हुआ। गोपाल को बचपन से ही सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी थी। स्कूल के दिनों में क्लबों और एनसीसी जैसी गतिविधियों में शामिल होते रहे। देश के श्रेष्ठ स्काउट के तौर पर उनका चयन हुआ था। वर्ल्ड जम्बोरी में स्वर्ण पदक भी मिला। स्काउट एवं गाइड प्रोग्राम में दो प्रधानमंत्री अवार्ड और तीन प्रेसिडेंट अवार्ड मिलने जैसी उपलब्धियां उनके खाते में हैं।

वर्ष 2011 में गोपाल मोहन, अरविन्द केजरीवाल, अंकित लाल, स्वाति मालीवाल और अन्य लोगो के साथ

सामाजिक जुड़ाव का वही जुनून आज भी जारी है। इस क्षेत्र में कई बंदिशों एवं सीमाओं के बावजूद गोपाल काफी संतुष्टि का अनुभव करते रहे। उन्हें अपने दो पेटेंट से कुछ रॉयल्टी मिल जाया करती है। 

वर्ष 2011 में जनलोकपाल आंदोलन के दौरान गोपाल मोहन ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभायी। अन्ना हजारे तथा अरविंद केजरीवाल के साथ मंच पर बैठने का अवसर मिला। भ्रष्टाचार के खिलाफ उस अभियान के बाद से वह आम आदमी पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय हैं। 

दायित्व: वर्ष 2012 में आम आदमी पार्टी के गठन के बाद गोपाल मोहन को नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के प्रबंधन का दायित्व मिला। उस वक्त लगभग बीस लोगों ने दिल्ली में चुनाव प्रचार शुरू किया। लोग आते गए और टीम बड़ी होती गयी। देश-विदेश के कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया और चंदा अभियान में मदद की। गोपाल मोहन ने जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर आम आदमी का संदेश घर-घर तक पहुंचाने का काम किया। वर्ष 2013 की अल्पमत की सरकार से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2015 की शानदार सफलता के हर दौर में आम आदमी पार्टी के हर भले या बुरे वक्त का गवाह बने रहे गोपाल मोहन। 

उन्होंने जनशिकायत प्रबंधन सिस्टम को दुरूस्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वह मुख्यमंत्री के एंटी करप्शन एडवाइजर भी रहे। इस भूमिका में मात्र दो-तीन महीनों के भीतर उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में 200-250 लोगों को निलंबित कराया तथा 40 से 50 अभियुक्तों को जेल भिजवाया। वर्तमान में वह मुख्यमंत्री के तकनीकी सलाहकार के तौर पर कार्यरत हैं। 

डोर स्टेप डिलीवरी का आइडिया: वर्ष 2015 में जब दूसरी बार ‘आप’ की सरकार बनी तो अरविंद केजरीवाल ने प्रशासन को आसान करने तथा सुशासन से संबंधित सुझाव मांगे। सभी लोगों ने हर चीज को ऑनलाइन करने का सुझाव दिया। विभिन्न सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया। इसके बावजूद यह पाया गया कि मात्र दस प्रतिशत लोग ही ऑनलाइन सेवा का उपयोग करते हैं। शेष तमाम लोग सरकारी दफ्तरों में ही जाकर काम कराते हैं। 

ऑनलाइन सर्विस का उपयोग न करने के पीछे कई वजहें थीं। पहली तो यह कि बड़ी संख्या में लोग अब भी तकनीक के उपयोग में सक्षम नहीं थे। दूसरा ऐसे लोगों की बड़ी संख्या थी जो ऑनलाइन लेन-देन के लिए क्रेडिट या डेबिट कार्ड का उपयोग नहीं करना चाहते थे। तीसरा सबसे बड़ा कारण यह कि ऑनलाइन आवेदन के बावजूद कुछ प्रक्रिया के लिए उन्हें सरकारी दफ्तर जाना ही पड़ता था। 

ऐसे में गोपाल मोहन के दिमाग में सरकारी सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी का आइडिया आया। उन्होंने सोचा कि क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति आवश्यक दस्तावेज और फीस की रकम किसी नागरिक से लेकर उसे सरकारी दफ्तर में जमा करा दे। अगर ऐसा होता है तो सरकारी कार्यालय की जटिलताओं से राहत मिल सकती है और नागरिकों को वहां जाने की जरूरत नहीं होगी। 

गोपाल मोहन के इस आइडिया को अरविंद केजरीवाल ने तत्काल स्वीकृति दे दी और इस पर काम भी शुरू हो गया। 

क्यों होता है भ्रष्टाचार: वर्तमान में किसी नागरिक को सरकारी दफ्तर से अपना कोई काम कराने के लिए कई बार चक्कर काटना पड़ता है। पहली बार तो वह सिर्फ इतना पता लगाने जाता है कि उसे कौन-कौन से दस्तावेज जमा करने होंगे। उसके बाद वह अपने दस्तावेज, फॉर्म और फीस वगैरह जमा करता है। सरकारी कार्यालय में लंबी कतारें होती हैं और प्रायः उन्हें अपना काम कराने के लिए काफी समय लगाना पड़ता है। एक मामूली काम के लिए भी लोगों को कई बार जाना और परेशान होना पड़ता है। इन जटिलताओं से बचने के लिए लोग बिचौलियों की मदद लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं। 

शोध और विश्लेषण: गोपाल मोहन की टीम को डोर स्टेप डिलीवरी योजना के कार्यान्वयन संबंधित चुनौतियों पर शोध करने में तीन-चार महीनों का वक्त लगा। जो योजना प्रारंभ में काफी आसान लगती थी, वही काफी भयावह दिखने लगी। इसकी फाइलों को इस विभाग से उस विभाग में दौड़ाया जाने लगा। विभिन्न अधिकारियों ने इस पर नकारात्मक टिप्पणियां लिखनी शुरू कर दीं। किसी ने अत्यधिक खर्च होने और बजट बढ़ने का हवाला दिया तो किसी ने लिखा कि नागरिकों का दायित्व है कि खुद सरकारी ऑफिस जाकर अपना काम कराए। किसी ने तो यहां तक लिख दिया कि ऐसी योजना से नागरिकों और उनके दस्तावेजों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। 

विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने ऐसे लगभग 130 कमेंट्स किए। गोपाल मोहन और आइटी एक्सपर्ट विजय चंद्रा ने दो-तीन महीने के रिसर्च के बाद सभी टिप्पणियों का जवाब दिया। आखिरकार इस योजना का लाभ समझाने में मदद मिली और टेंडर का प्रारूप बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। 

लेकिन जब एलजी के पास फाइनल प्रस्ताव भेजा गया तो उन्होंने अजीबोगरीब कारण बताकर अस्वीकृत कर दिया। इनमें एक कारण यह भी बताया गया कि सेवाओं की घर-घर डिलीवरी से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ जाएगा। 

गोपाल मोहन, अरविन्द केजरीवाल के साथ साउथ कोरिया के दौरे पर (सितम्बर 2018)

प्रारंभिक बाधाएं: एलजी की अस्वीकृति के बाद लगभग एक साल तक यह योजना ठंडे बस्ते में पड़ी रही। टीम के ज्यादातर सदस्यों ने इस परियोजना को लेकर उम्मीदें भी छोड़ दी। इस बीच गोपाल ने एलजी के साथ दो-तीन बार मिलकर उन्हें समझाने का भरपूर प्रयास किया। लेकिन एलजी को समझाना मुश्किल नहीं, असंभव था।

संयोगवश, 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और एलजी की शक्तियों को लेकर स्पष्ट आदेश सुना दिया। इसके बाद तो इस योजना को पंख लग गए। दिल्ली कैबिनेट ने योजना को मंजूरी दे दी और तत्काल इसे लागू भी कर दिया।
डोर स्टेप डिलीवरी की प्रक्रिया: सरकारी सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी में 40 प्रकार की सेवाओं को शामिल किया गया है। इसकी प्रक्रिया बेहद आसान है। नागरिक को हेल्पलाइन नंबर 1076 पर फोन करके अपनी जरूरत बतानी है। उसकी सुविधा के अनुसार सरकारी प्रतिनिधि उसके घर पहुंच जाएगा। नागरिक को सिर्फ अपने आवश्यक दस्तावेज दिखाने हैं। सरकारी प्रतिनिधि इन दस्तावेजों की फोटो कॉपी अथवा खुद ही टैब में फोटो लेकर आवेदन की प्रक्रिया पूरी कर देगा। वह निर्धारित शुल्क ले लेगा या ऑनलाइन भुगतान करा देगा। इस सेवा के एवज में वह मात्र 50 रुपये सर्विस फीस लेगा। 

नागरिकों को मिलनेवाली यह सुविधा अनुदानित है। सरकार को इसके लिए प्रति सेवा 65 रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। यह सेवा वीएफएस ग्लोबल नामक कंपनी के सहयोग से चलायी जा रही है। इसका चयन समुचित टेंडर प्रक्रिया के जरिए हुआ। इसके लिए क्यूसीबीएस सिस्टम अपनाते हुए ग्लोबल टेंडर निकाला गया था। गुणवत्ता के लिए 70 फीसदी तथा वित्तीय बिड के लिए 30 प्रतिशत अंक निर्धारित थे। टेंडर प्रक्रिया में लगभग छह माह का समय लगा।

योजना का जोरदार स्वागत: दस सितंबर, 2018 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस योजना का उदघाटन किया। पहले चरण में 40 सेवाओं को शामिल किया गया। दिल्ली के नागरिकों ने काफी उत्साह के साथ इसका स्वागत किया। टीम ने प्रतिदिन 5000 टेलिफोन कॉल का अनुमान लगाया था। लेकिन प्रतिदिन 20,000 से 30,000 टेलिफोन कॉल आने लगे। अनुमान यह लगाया गया था कि 30 फीसदी नागरिक इस सेवा का लाभ लेंगे। लेकिन टीम ने यह तैयारी भी कर रखी थी कि अगर 95 प्रतिशत लोग भी इसका उपयोग करना चाहें तो परेशानी नहीं आए। सरकारी दफ्तरों में कतार में लगे लोगों के बीच एक सर्वेक्षण कराया गया था। उसमें 95 प्रतिशत लोगों ने इस योजना का लाभ उठाने की सहमति दी थी। 

योजना प्रारंभ होने के एक सप्ताह के भीतर ऐसे तमाम फोन कॉल्स को अपनी तरफ से कॉल करके बात कर ली गई, जिनसे शुरूआत में बात नहीं हो पायी थी। शुरूआत में 50 फोन लाइन तथा 70 प्रतिनिधि थे। लेकिन नागरिकों का उत्साह और भारी पैमाने पर आ रही फोन कॉल्स को देखते हुए टेलिफोन लाइन की संख्या 300 तथा प्रतिनिधियों की संख्या 400 कर दी गयी। टीम की योजनाएक ऐसा डाटा वेबसाइट बनाने की भी है जहां नागरिक विभिन्न सेवाओं के उपयोग की जानकारी ले सकें तथा उनके प्रभाव का पता लगा सकें। 

विस्तार: योजना की प्रारंभिक परेशानियों को जल्द ही ठीक कर लिया गया। बड़ी संख्या में फोन कॉल्स आने के कारण शुरूआत में काफी लोगों के फोन कनेक्ट नहीं हुए। लेकिन जिस किसी ने एक बार भी फोन लगाया हो, उसका नंबर रजिस्टर्ड हो जाने की सुविधा के कारण उन्हें कॉल बैक कर लिया गया। फोन लाइन की संख्या भी बढ़ा गयी। इसके कारण सभी फोन कॉल्स कनेक्ट होने लगे और स्टाफ के द्वारा इस पर तत्काल उत्तर भी दिया जाने लगा। अभी स्टाफ की संख्या 380 हो चुकी है। जब कभी 130 सेवाओं को जोड़ा जाएगा तब लगभग 800-900 प्रतिनिधियों की जरूरत होगी।

अडंगेबाजी का सामना: योजना प्रारंभ होने के बाद कुछ लोगों ने इसमें अडंगा लगाने की कोशिश की। उन्होंने हेल्पलाइन नंबर पर फोन करके गलत पते दिए। प्रतिनिधियों को बुलाने के बाद कह दिया कि सेवा की जरूरत नहीं। ऐसे तंग करनेवाले लोगों से छुटकारा पाने के लिए उनसे किसी दस्तावेज के नंबर की जानकारी मांगी जाने लगी। जैसे राशन कार्ड लेना हो तो उसे आवासीय प्रमाण, आय प्रमाण, पहचान पत्र, बिजली बिल इत्यादि का सीरियल नंबर मांगा गया। इनमें से किसी भी एक दस्तावेज के नंबर को सरकारी रिकॉर्डस से मिलाया जाने लगा। इस तरह फेक कॉलर की बाधा को दूर किया गया। 

सीसीटीवी कैमरा प्रोजेक्ट: गोपाल मोहन ने सीसीटीवी कैमरा प्रोजेक्ट में भी प्रमुख भूमिका निभायी। पहले सीसीटीवी कैमरा के लिए प्राक्कलित राशि 3000 करोड़ थी। लेकिन यह घटकर 1.4 लाख सीसीटीवी कैमरा के लिए 350 करोड़ हो गयी। इस योजना के तहत पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। वायरलेस सीसीटीवी लगाने के फैसले के कारण प्रोजेक्ट के व्यय में काफी कमी आ गयी। एक ही किस्म के कैमरे की बड़े पैमाने पर खरीद के कारण भी कंपनियों ने दाम कम कर दिए। सभी सीसीटीवी कैमरा के निगरानी और रख-रखाव के लिए एक कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम भी बनाया जाएगा। 

अन्य राज्य सरकारों के लिए प्रेरणा: कई राज्य सरकारों ने डोरस्टेप डिलीवरी और सीसीटीवी प्रोजेक्ट के लिए गोपाल मोहन से संपर्क किया है। आंध्रप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में उन्हें बुलाकर सुझाव लिए गए। राजस्थान ने दिल्ली जैसा टेंडर दस्तावेज बनाया है। मुंबई में भी 6000 सीसीटीवी कैमरे के लिए 1000 करोड़ योजना शुरू हुई। गोपाल मोहन ने अन्य राज्य सरकारों को दिल्ली सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल की भी जानकारी दी। अब वह वाई-फाई परियोजना पर काम कर रहे हैं। जल्द ही इस संबंध में अच्छी खबर सुनने को मिलेगी।

अगला कदम तो और शानदार होगा: सरकारी सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी का अभी पहला चरण है। गोपाल मोहन की आदर्श परियोजना को इससे काफी बेहतर और शानदार होनेवाली है। उनकी भावी योजना के अनुसार आवेदन के वक्त हर नागरिक के दस्तावेजों की जांच करने की जरूरत नहीं होगी। सरकार के पास पहले से ही हर नागरिक के दस्तावेज मौजूद है। ऐसे में बार-बार नागरिकों से दस्तावेज लेने की कोई जरूरत नहीं है। जब कोई नागरिक किसी सेवा के लिए हेल्पलाइन में फोन करेगा तो उसका वेरिफिकेशन सरकारी डाटाबेस से कर लिया जाएगा। उसके अगले दिन उसका दस्तावेज बनाकर नागरिक के घर पहुंचा दिया जाएगा। उसका पहचान पत्र सिर्फ उसे दस्तावेज सौंपने के वक्त देखा जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो कि सही व्यक्ति को दिया जा रहा है। 

यह गोपाल मोहन का आदर्श मॉडल है और निकट भविष्य में हम इसे भी सफल होते देखेंगे।  

इस ब्लॉग के अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के लिए Vishnu Rajgadia को बहुत बहुत धन्यवाद

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