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नर्मदा पुत्र आलोक अग्रवाल, जो अब मध्यप्रदेश की जरूरत है : IIT से AAP तक का सफर

Read In English: From "Narmada Putra" to "A Leader MP deserves" 


आईआईटी कानपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के उस छात्र के सामाजिक जुड़ाव की कहानी दिलचस्प है। उस वक्त वह तृतीय वर्ष का विद्यार्थी था। कॉलेज परिसर के समीप एक बस्ती के बच्चे दिन भर आवारा घूमते। उनके पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उनकी स्थिति से दुखी होकर उसने बस्ती में जाकर बच्चों को जुटाया और पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई। उसके कुछ दोस्तों ने भी बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इस तरह उन बच्चों की पढ़ाई का एक सिलसिला शुरू हुआ। आईआईटी के इन विद्यार्थियों को ताज्जुब होता कि इतने सारे बच्चों के लिए आखिर कोई स्कूल क्यों नहीं है। जल्द ही पता चला कि कागजों में इनके लिए एक स्कूल मौजूद है, और 2 शिक्षक भी। भले ही व्यवहार में कुछ ना हो।

1986 के उस दौर में सरकारी स्कूलों और शिक्षकों पर कोई जवाबदेही नहीं थी। हालांकि वह आज भी नहीं है। इसके बावजूद हम ऐसे नेताओं को चुनते आए हैं, जिन्होंने बच्चों की कई पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया। बस्ती के उन बच्चों की शिक्षा का जुनून लेकर आईआईटी कानपुर के उस छात्र ने जिले के शिक्षा अधिकारी से मुलाकात की। साहब के लिए यह हैरानी की बात थी कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के स्टूडेंट्स किसी बस्ती के बच्चों की ऐसी चिंता कर रहे हैं। कई मुलाकात के बाद उस अधिकारी ने स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर, बिल्डिंग, शिक्षकों की व्यवस्था इत्यादि सभी कामों के लिए कुल ₹25000 की राशि की व्यवस्था कर दी। यह राशि भले ही मामूली हो, लेकिन बस्ती के 150 स्टूडेंट्स के लिए तो आलोक भैया मानो कोई देवदूत हों। इस तरह अपनी पढ़ाई के दौरान ही आलोक अग्रवाल ने सोशल इंजीनियरिंग भी शुरू कर दी थी।

उसी दौरान आलोक ने देखा कि कॉलेज परिसर में बिहार के काफी मजदूर काम कर रहे हैं। नई इमारतों के निर्माण जैसे कार्य में लगे मजदूरों के बच्चों की शिक्षा का कोई अवसर नहीं था। यहां तक कि इन मजदूरों को पूरी मजदूरी का भुगतान भी नहीं होता था। उनसे जिस रकम पर हस्ताक्षर कराया जाता, उसकी मात्र आधी रकम का भुगतान होता था। ठेकेदारों द्वारा शोषण के खिलाफ आलोक ने संघर्ष की ठानी। दरअसल आलोक को महात्मा गांधी, अरविंदो, बाबा आमटे ओशो इत्यादि की किताबें पढ़ने तथा दर्शन और आध्यात्म का शौक था। मजदूरों के हक के लिए आलोक ने गांधीवादी रास्ता अपनाया। अपने कुछ दोस्तों के साथ आईआईटी परिसर में ही धरना देकर पूरी मजदूरी का आंदोलन शुरू किया। आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में ऐसा आंदोलन कभी नहीं हुआ था। आखिरकार कॉलेज प्रबंधन ने जांच की और मजदूरों को पूरी मजदूरी का भुगतान हुआ। इससे आलोक को यह बात समझ में आ गई कि संघर्ष के बगैर कोई सामाजिक बदलाव नहीं होता और ऐसी जीत का फल मीठा होता है।

आलोक ने आईआईटी कानपुर से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। इसे कारपोरेट इंडिया का द्वार समझा जाता है। आलोक के लिए अमेरिका में स्कॉलरशिप के अवसर थे। उनके ज्यादातर दोस्तों ने आगे की पढ़ाई, एमबीए, बड़ी नौकरी या अन्य आकर्षक कैरियर चुन लिए। लेकिन आलोक पर तो कुछ और ही धुन सवार थी। उसे खुद को लेकर उतने ही सवाल थे, जितने अपने देश और देशवासियों को लेकर। उसने इसी दिशा में अपनी समझ बनाने का प्रयास किया। वह ओडिशा में मछुआरों के आंदोलन में शामिल हो गया। कभी वह आदिवासियों के बीच रहकर उनकी जीवनशैली समझने की कोशिश करता, तो कभी बस्तियों में रहकर गरीबी के मायने का पता लगाता। कभी वह वर्धा के गांधी आश्रम जाकर कुछ सीखने और करने की कोशिश करता। लगभग एक साल तक देश के विभिन्न हिस्सों में घूमने के बाद उसने नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़कर काम शुरू किया। उसे यह बात समझ में आ रही थी कि बड़े बांध पर आधारित विकास के मॉडल में क्या खामियां हैं। इसमें आर्थिक लाभ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। लेकिन डूब, बाढ़, विस्थापन और नागरिकों को होने वाली परेशानियों की कीमत का आकलन नहीं किया जाता। आलोक हैरान था कि ग्रामीणों को मुआवजा और पुनर्स्थापना की व्यवस्था किए बगैर गैरकानूनी तरीके से उनकी जमीनों और घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे थे।

कुल मिलाकर, 'कारपोरेट इंडिया' ने अपना एक 'हीरा' खो दिया था, जो नर्मदा आंदोलन को मिला। एक ऐसा कार्यकर्ता, जो काफी स्मार्ट था। जनता और उनके मुद्दों को लेकर काफी संवेदनशील। अपनी समझ में काफी तर्कशील और तीक्ष्ण, जिसके पास अद्भुत संगठन क्षमता थी। वह एक स्वाभाविक जननेता था। इसके अगले चार वर्षों में आलोक अग्रवाल ने नर्मदा आंदोलन में भरपूर योगदान किया। अपनी नेतृत्व क्षमता और रणनीति के जरिए उन्होंने डूब और विस्थापन से बर्बाद होने वाले लोगों की काफी मदद की। इन विषयों पर नीतिगत बहसों को दिशा देने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। उनके प्रयासों का नतीजा है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन में पांच लाख से भी ज्यादा लोगों को लगभग 4000 करोड़ रुपयों का मुआवजा मिला। देश में भूमि अधिग्रहण का एक नया कानून भी आया। बड़े बांध पर आधारित विकास को लेकर पुनर्विचार संभव हुआ। ऐसी कई बड़ी परियोजनाएं स्थगित हुई। इन सबसे बढ़कर, मध्यप्रदेश की जनजातियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा का एक एहसास पैदा हुआ। यही कारण है कि आलोक अग्रवाल को 'नर्मदा-पुत्र' के तौर पर जाना जाता है।

Alok Agarwal and Medha Patkar at Jal Sinshi, MP Tribal village (1994)
इन अनुभवों ने आलोक को सिखाया कि नागरिकों के अधिकारों के प्रति सरकारी व्यवस्था काफी संवेदनहीन है। आंदोलन के जरिए एक सीमित सफलता ही मिल सकती है। वास्तविक बदलाव के लिए सिस्टम के भीतर जाना और खुद पावर को नियंत्रित करना जरूरी है। आलोक ने देखा कि मानव विकास सूचकांक के मामले में मध्यप्रदेश काफी पीछे है। अशिक्षा, कुपोषण, शिशु मृत्यु बिजली, पानी, बेरोजगारी किसानों की आत्महत्या, भ्रष्टाचार जैसे बड़े मुद्दे थे। आखिरकार उन्होंने अपने पुराने मित्र अरविंद केजरीवाल का प्रस्ताव मानकर आम आदमी पार्टी जॉइन कर ली।

आलोक ने 2014 दिन में आम आदमी पार्टी में आकर खंडवा सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा। इसमें उन्हें सफलता तो नहीं मिल सकी, लेकिन काफी कुछ सीखने का मौका मिला। एक राजनीतिक दल के लिए संगठन बनाने, लोगों का चयन करने, मुद्दों को समझने तथा प्रचार अभियान के अनुभव मिले। उन्हें चुनावी मशीनरी की उपयोगिता, डोर टू डोर कैंपेन, बूथ लेबल संगठन के निर्माण तथा सोशल मीडिया के उपयोग इत्यादि का भी अनुभव मिला।

इन चार वर्षों में आलोक अग्रवाल ने आम आदमी पार्टी को एक जुझारू ताकत के तौर पर खड़ा कर दिया है। अब इसे मध्यप्रदेश में तीसरे विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। आप-का-साथी कहे जाने वाले 40000 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। इनमें प्रत्येक के ऊपर 250 से 300 तक परिवारों से संपर्क का दायित्व है।
चुनाव में विजय के लिए जिस प्रकार के सुव्यवस्थित और मजबूत संगठन की आवश्यकता होती है, उसका निर्माण करके मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में आप एक जबरदस्त दावेदार के तौर पर उभरी है।
बूथ लेवल तक मजबूत संगठन की तैयारी के साथ ही आलोक अग्रवाल ने बौद्धिक तौर पर भी महत्वपूर्ण तैयारियां की हैं।

उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों के प्रख्यात विद्वानों और पेशेवर लोगों का समूह बनाया है। इनमें आईआईटी, आईआईएम तथा अन्य विशेषज्ञता वाले लोग शामिल हैं। डेवलपमेंट सेक्टर के भी महत्वपूर्ण लोगों की मदद मिल रही है। मध्यप्रदेश के मानव विकास सूचकांक को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी, रोजगार, आर्थिक विकास कृषि को खास मदद जैसे विषयों को शामिल किया गया है। इन पर आधारित है आम आदमी पार्टी का चुनावी घोषणापत्र। ठीक उसी तरह, जैसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 70 सूत्री घोषणापत्र जारी किया था।
दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य में बड़े बदलाव से आलोक अग्रवाल काफी उत्साहित हैं। कहते हैं कि आज तक किसी भी पार्टी ने इतने कम समय में कितना काम नहीं किया। अगर हम मध्यप्रदेश के लोगों को दिल्ली में अपने काम की जानकारी देंगे, तो उनका समर्थन जरूर मिलेगा।

सच तो यह है कि मध्यप्रदेश की जनता ने 70 साल में राजनेताओं पर से भरोसा खो दिया है। अब नए सिरे से लोगों में उम्मीद पैदा करने की जिम्मेवारी आलोक अग्रवाल जैसे लोगों पर है।

सच तो यह है कि आलोक अग्रवाल मध्यप्रदेश के लिए एक आदर्श राजनेता हैं। वैचारिक रूप से काफी समृद्ध, नागरिकों और उनके मुद्दों को लेकर संवेदनशील तथा हर वक्त सीखने की तमन्ना रखने वाला एक शिक्षित दिमाग। मध्यप्रदेश के लोगों के सामने इस 'कर्मयोगी' को चुनने का सुअवसर है, जो एक ईमानदार राजनीति के जरिए सच्चे बदलाव का नेतृत्व कर सके।

1990 से लेकर आज तक के संघर्षो को दर्शाता यह वीडियो:



इस ब्लॉग के अंग्रेजी (मूलतह अरविन्द झा द्वारा लिखा गया ) से हिंदी अनुवाद के लिए Vishnu Rajgadia को बहुत बहुत धन्यवाद

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