दिल्ली के सरकारी स्कूल की शिक्षिका मनु गुलाटी: एक ईंट, जो शिक्षा व्यवस्था का स्तंभ बनी
Read in English: Brick of the Wall to Pillar of the System
वर्ष 2017 की राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार विजेता मनु गुलाटी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं। उन्हें राष्ट्रीय आईटीसी शिक्षा पुरस्कार 2014 भी मिल चुका है। लिहाजा, मनु गुलाटी को देश की ऐसी सर्वाधिक युवा शिक्षिका के तौर पर जाना जाता है, जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
लेकिन अब तो उन्हें दिल्ली की शिक्षा क्रांति में अग्रणी भूमिका के लिए भी सम्मान का पात्र समझा जाने लगा है।
वह 12 वर्षों से सरकारी शिक्षा व्यवस्था का अंग हैं। लेकिन पहले उन्होंने कभी शिक्षा में ऐसा आमूल बदलाव नहीं देखा। अंग्रेजी साहित्य तथा शिक्षा- यानी दो विषयों में स्नातकोत्तर करने वाली मनु अपने विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाती हैं। वह जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से पीएचडी भी कर रही हैं। उनका विषय है - दिल्ली के सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स की अंग्रेजी सुनने और बोलने की क्षमता कैसे बढ़ाएं।
वर्ष 2017 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छह शिक्षकों को फुलब्राइट स्कॉलरशिप कार्यक्रम में चयनित किया गया था। मनु उनमें से एक हैं। अब वह दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा उन्नत करने की योजना के तहत मेंटर शिक्षक का दायित्व भी संभाल रही हैं।
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12 साल का अनुभव:
मनु गुलाटी ने प्रारंभ में दो साल तक निजी विद्यालय में अध्यापन किया। उसके बाद 12 साल से दिल्ली के सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। उन्होंने विगत तीन वर्षों में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव देखा है। उन्नत स्तर के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, छोटे क्लासरूम में बेहतर प्रशिक्षण, शिक्षकों को नए दायित्व देना जैसे क़दमों से पूरे शैक्षणिक तंत्र में आमूल परिवर्तन हुए हैं।
मेंटर टीचर कार्यक्रम भी एक ऐसा ही प्रयास है। इसमें प्रशिक्षित शिक्षकों को पांच छह स्कूलों के शिक्षकों का मेंटर बनाया जाता है। मेंटर टीचर को देश तथा दुनिया की विभिन्न संस्थाओं में विशेष प्रशिक्षण मिलता है।
मनु गुलाटी को अमेरिका तथा सिंगापुर में शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। दरअसल दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 50000 से भी ज्यादा शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण के लिए कहीं बाहर भेजना संभव नहीं था। इसलिए मेंटर टीचर योजना लाई गई। यह अनवरत प्रशिक्षण की प्रक्रिया है। इसके तहत चयनित शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद ऐसे शिक्षक अन्य शिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। उनके साथ नियमित रूप से काम करते हैं। मेंटर शिक्षकों पर कार्यशाला के आयोजन तथा हर शिक्षक से व्यक्तिगत संवाद के माध्यम से उन्हें अकादमिक मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करने का दायित्व है। इस प्रक्रिया में उन्हें परस्पर सहयोग से पूरक सामग्री के निर्माण का भी अवसर मिलता है।
इस तरह, जो मनु गुलाटी पहले इस शिक्षा व्यवस्था की दीवार में महज एक ईंट थीं, वह खुद एक मजबूत स्तंभ बन चुकी हैं। इस क्रम में उन्हें काफी सम्मान और प्रतिष्ठा का अवसर मिला। इसके लिए वह दिल्ली सरकार की आभारी हैं। उन्हें सरकारी स्कूल की शिक्षिका होने पर गर्व है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
पिछले दिनों दिल्ली सरकार और इंडिया डाइटेटिक्स एसोसिएशन ने एशिया सम्मिट ऑन एजुकेशन एंड स्किल्स का आयोजन किया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के साथ ही लगभग 20 देशों के प्रतिनिधि आए थे। इसमें शिक्षण व्यवस्था की मौजूदा प्रणालियों और चुनौतियों पर चर्चा हुई। विभिन्न प्रकार के डिस्प्ले स्टॉल लगाए गए।
इस दौरान अफ़गानिस्तान के शिक्षा मंत्री ने हैप्पीनेस करिकुलम लागू करने पर सहमति जताई। कई अन्य देशों ने भी हैप्पीनेस करिकुलम लागू करने में दिलचस्पी दिखाई।
मनु गुलाटी को इस कार्यक्रम में अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्री से संवाद का अवसर मिला। इस दौरान मनु गुलाटी के लिए अफगानिस्तान के शिक्षामंत्री की बात अविस्मरणीय है। उनका कहना था कि हैप्पीनेस कुरिकुलम से अफगानिस्तान के स्कूलों के विद्यार्थियों का तनाव दूर होगा क्योंकि उनके मुल्क में राजनीतिक उथल पुथल के कारण बच्चे काफी परेशान रहते हैं।
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हैप्पीनेस करिकुलम जुलाई 2018 में लागू हुआ था। इसका असर अब साफ दिखने लगा है। शिक्षकों ने अपने विद्यार्थियों के व्यवहार में काफी परिवर्तन महसूस किया है। आमतौर पर परीक्षाओं का वक्त विद्यार्थियों के लिए काफी तनावग्रस्त रहता है। लेकिन पहले के वर्षों की तुलना में इस साल की परीक्षाओं में बच्चों का तनाव काफी कम देखा गया। जो बच्चे हैप्पीनेस करिकुलम में शामिल हैं, उनके लिए अपने विषय पर केंद्रित करना तथा ज्यादा सीखना आसान हो चुका है।
सरकारी शिक्षक और दिल्ली सरकार:
मनु गुलाटी बताती हैं कि किस तरह दिल्ली की शिक्षा में बड़ा बदलाव आया है। उनके अनुसार, इस बात में कोई संदेह नहीं कि समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में किसी जवाबदेह सरकार की प्रमुख भूमिका होती है। सरकारों का काम महज बजट बनाना और शिक्षा पर खर्च का इंतजाम करना नहीं। विभिन्न स्तर पर नीतियों के निर्माण के जरिए शिक्षा का विकास करना भी एक बड़ा दायित्व है। इसके लिए शैक्षणिक संस्थाओं को समुचित संसाधन उपलब्ध कराना तथा स्वायत्त शक्तियां देना जरूरी हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसे ही क़दमों के जरिये स्कूलों में बड़ा बदलाव ला दिया है।
सरकारें बदलती रहेंगी, लेकिन स्कूलों के शिक्षक लंबे अरसे तक शैक्षिक व्यवस्था का अंग बने रहेंगे। उन्हें किस प्रकार के शैक्षणिक और प्रशासनिक दायित्व दिए जाते हैं, यह सरकारों और उनकी विचारधारा पर निर्भर करता है। दिल्ली की वर्तमान सरकार ने शिक्षा को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाया है। अपने मूल बजट का लगभग 20% से भी ज्यादा हिस्सा शिक्षा पर खर्च कर रही है दिल्ली सरकार।
इस तरह दिल्ली में सरकारी स्कूलों में दो स्तर पर बड़े बदलाव हुए-
1. अधिसंरचना के स्तर पर
2. प्रयास के स्तर पर
बड़ी संख्या में नए स्कूल भवन बनाए गए हैं। इनमें लैबोरेट्रीज हैं, स्मार्ट क्लासरूम हैं, लाइब्रेरी हैं, स्विमिंग पूल हैं, जिम हैं, और बच्चों के विकास की तमाम सुविधाएं हैं। एक ऐसा परिवेश बनाया गया है जिसमें शिक्षक, अभिभावक और स्टूडेंट्स, सब मिलकर साथ काम करें। परस्पर सहयोग से सीखने का अवसर दिया जा रहा है।
समुदाय की भागीदारी:
शिक्षा व्यवस्था के बदलाव में समुदाय को भी हिस्सेदार बनाया गया है। इसके लिए स्कूल प्रबंधन समितियों को मजबूत किया गया है। इसमें स्कूल के प्राचार्य, शिक्षक तथा बच्चों के अभिभावक होते हैं। चुनाव के जरिए इनका चयन होता है। अभिभावकों द्वारा स्कूल प्रबंधन समितियों में महत्वपूर्ण सुझाव दिए जाते हैं। मेगा पेरेंट्स टीचर मीटिंग का भी आयोजन होता है।
स्कूल प्रबंधन समितियों को महत्वपूर्ण प्रशासनिक दायित्व दिए गए हैं। हाल में दिल्ली सरकार ने प्रत्येक स्कूल को पांच लाख की राशि दी है। इसका स्कूल प्रबंधन समिति की सहमति से किसी भी प्रकार का उपयोग किया जा सकता है। इस फंड के माध्यम से शिक्षक या विशेष प्रशिक्षण का भी इंतजाम किया जा सकता है। फर्नीचर लाना हो या कोई अतिरिक्त लैब बनाना हो, इनमें भी इसका उपयोग हो सकता है। जिस स्कूल में बच्चों की संख्या ज्यादा हो, उनमें राशि बढ़ाई जा सकती है।
फुलब्राइट स्कॉलर:
वर्ष 2018 में फुलब्राइट स्कॉलरशिप के लिए चयनित छह शिक्षकों में मनु गुलाटी भी एक थीं। वह जनवरी से मार्च 2018 तक अमेरिका में रहीं। इन्हें अमेरिकन शैक्षणिक व्यवस्था से काफी कुछ सीखने का मौका मिला। शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल करने, विषय केंद्रित वर्कशॉप करने, शिक्षा विज्ञान से जुड़ी नई पहल करने, स्कूलों की विजिट तथा स्कूलों के कार्यक्रमों में सहभागिता के अवसर मिले।
अमेरिका से लौटकर इन शिक्षकों ने अपने इस अनुभव तथा ज्ञान का उपयोग दिल्ली के स्कूलों को बेहतर करने के लिए किया। उन्होंने अपने स्कूल की विभिन्न कक्षाओं में घूमकर चर्चा की। इससे शिक्षकों तथा स्टूडेंट्स, दोनों को लाभ हुआ। एक दूसरे से संवाद और सीखने का मौका मिला।
अमेरिका से लौटे शिक्षकों ने अलग-अलग विषयों पर भी विशेष प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। इन फुलब्राइट स्कॉलरों ने दिल्ली में सरकारी स्कूलों के 200 मेंटर शिक्षकों के साथ भी अपना अनुभव बांटा। ऐसे मेंटर शिक्षक दिल्ली के 50000 स्कूल शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।
हैप्पीनेस करिकुलम:
वर्तमान में हैप्पीनेस करिकुलम का निर्माण केजी से आठवीं कक्षा तक के लिए किया गया है। कम उम्र के स्टूडेंट्स की ज्यादा सीखने की क्षमता के अनुकूल विशेष कार्यक्रम बनाया गया है।
हैप्पीनेस करिकुलम के अंतर्गत ध्यान केंद्रित करने, मस्तिष्क पर विशेष जोर देने, ध्यान से सुनने, सावधानीपूर्वक सांस लेने जैसी चीजों ने बड़ा असर दिखाया है। इनसे बच्चों के प्रदर्शन पर अच्छा असर पड़ रहा है। इसके कारण उच्च कक्षाओं में भी इस पाठ्यक्रम को लागू करने की मांग आने लगी है। कहा जा रहा है कि हम स्कूल में जो कुछ भी सीखते हैं, वह जीवन भर हमारे साथ रहता है। इसलिए हैप्पीनेस भी हमारे साथ रहे।
शेयरिंग और लर्निंग:
दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा प्रणाली में काफी नवाचार लाया गया है। यह एक नियमित प्रक्रिया है। शोधकर्ताओं और शिक्षकों की एकेडमिक रिसर्च टीम है। वह विभिन्न देशों की गुड प्रैक्टिसेज का संकलन करके दिल्ली के बच्चों के अनुरूप प्रोग्राम तैयार कर रही है।
दिल्ली सरकार समग्र विकास पर भरोसा रखती है। वह दिल्ली की शिक्षा क्रांति को दिल्ली तक सीमित रखना नहीं चाहती। इसलिए सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, शिक्षकों तथा सरकारी अधिकारियों की एक टीम बनाई गई है, जो अन्य राज्यों के साथ अपने नॉलेज को शेयर करे। जल्द ही दिल्ली सरकार एक ऐसा ऑनलाइन वीडियो सीरीज बनाएगी जिसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के शिक्षण सामग्री को देशभर में उपयोग के लिए जारी किया जा सके।
दिल्ली की इस शिक्षा क्रांति ने बड़े बदलाव की उम्मीद जगाई है। यह मनु गुलाटी जैसी उन शख्सियतों के कारण संभव हुआ है, जिन्होंने हर चुनौती को सहज कबूल किया हो।
आप का रेडियो : 07 अक्टूबर को श्रीमती मनु गुलाटी से परिचर्चा पर आधारित
इस ब्लॉग के हिंदी अनुवाद के लिए डॉ विष्णु राजगढ़िया को बहुत बहुत धन्यवाद
आगे पढ़े: डोरस्टेप को और भी अनोखी सेवा बनाएंगे गोपाल मोहन
वर्ष 2017 की राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार विजेता मनु गुलाटी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं। उन्हें राष्ट्रीय आईटीसी शिक्षा पुरस्कार 2014 भी मिल चुका है। लिहाजा, मनु गुलाटी को देश की ऐसी सर्वाधिक युवा शिक्षिका के तौर पर जाना जाता है, जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
वर्ष 2017 की राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार स्वीकार करती हुई मनु गुलाटी |
वह 12 वर्षों से सरकारी शिक्षा व्यवस्था का अंग हैं। लेकिन पहले उन्होंने कभी शिक्षा में ऐसा आमूल बदलाव नहीं देखा। अंग्रेजी साहित्य तथा शिक्षा- यानी दो विषयों में स्नातकोत्तर करने वाली मनु अपने विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाती हैं। वह जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से पीएचडी भी कर रही हैं। उनका विषय है - दिल्ली के सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स की अंग्रेजी सुनने और बोलने की क्षमता कैसे बढ़ाएं।
वर्ष 2017 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छह शिक्षकों को फुलब्राइट स्कॉलरशिप कार्यक्रम में चयनित किया गया था। मनु उनमें से एक हैं। अब वह दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा उन्नत करने की योजना के तहत मेंटर शिक्षक का दायित्व भी संभाल रही हैं।
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12 साल का अनुभव:
मनु गुलाटी ने प्रारंभ में दो साल तक निजी विद्यालय में अध्यापन किया। उसके बाद 12 साल से दिल्ली के सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। उन्होंने विगत तीन वर्षों में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव देखा है। उन्नत स्तर के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, छोटे क्लासरूम में बेहतर प्रशिक्षण, शिक्षकों को नए दायित्व देना जैसे क़दमों से पूरे शैक्षणिक तंत्र में आमूल परिवर्तन हुए हैं।
मेंटर टीचर कार्यक्रम भी एक ऐसा ही प्रयास है। इसमें प्रशिक्षित शिक्षकों को पांच छह स्कूलों के शिक्षकों का मेंटर बनाया जाता है। मेंटर टीचर को देश तथा दुनिया की विभिन्न संस्थाओं में विशेष प्रशिक्षण मिलता है।
मनु गुलाटी को अमेरिका तथा सिंगापुर में शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। दरअसल दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 50000 से भी ज्यादा शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण के लिए कहीं बाहर भेजना संभव नहीं था। इसलिए मेंटर टीचर योजना लाई गई। यह अनवरत प्रशिक्षण की प्रक्रिया है। इसके तहत चयनित शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद ऐसे शिक्षक अन्य शिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। उनके साथ नियमित रूप से काम करते हैं। मेंटर शिक्षकों पर कार्यशाला के आयोजन तथा हर शिक्षक से व्यक्तिगत संवाद के माध्यम से उन्हें अकादमिक मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करने का दायित्व है। इस प्रक्रिया में उन्हें परस्पर सहयोग से पूरक सामग्री के निर्माण का भी अवसर मिलता है।
इस तरह, जो मनु गुलाटी पहले इस शिक्षा व्यवस्था की दीवार में महज एक ईंट थीं, वह खुद एक मजबूत स्तंभ बन चुकी हैं। इस क्रम में उन्हें काफी सम्मान और प्रतिष्ठा का अवसर मिला। इसके लिए वह दिल्ली सरकार की आभारी हैं। उन्हें सरकारी स्कूल की शिक्षिका होने पर गर्व है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
पिछले दिनों दिल्ली सरकार और इंडिया डाइटेटिक्स एसोसिएशन ने एशिया सम्मिट ऑन एजुकेशन एंड स्किल्स का आयोजन किया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के साथ ही लगभग 20 देशों के प्रतिनिधि आए थे। इसमें शिक्षण व्यवस्था की मौजूदा प्रणालियों और चुनौतियों पर चर्चा हुई। विभिन्न प्रकार के डिस्प्ले स्टॉल लगाए गए।
इस दौरान अफ़गानिस्तान के शिक्षा मंत्री ने हैप्पीनेस करिकुलम लागू करने पर सहमति जताई। कई अन्य देशों ने भी हैप्पीनेस करिकुलम लागू करने में दिलचस्पी दिखाई।
मनु गुलाटी को इस कार्यक्रम में अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्री से संवाद का अवसर मिला। इस दौरान मनु गुलाटी के लिए अफगानिस्तान के शिक्षामंत्री की बात अविस्मरणीय है। उनका कहना था कि हैप्पीनेस कुरिकुलम से अफगानिस्तान के स्कूलों के विद्यार्थियों का तनाव दूर होगा क्योंकि उनके मुल्क में राजनीतिक उथल पुथल के कारण बच्चे काफी परेशान रहते हैं।
अफ़ग़ानिस्तान के शिक्षा मंत्री के साथ मनु गुलाटी |
सरकारी शिक्षक और दिल्ली सरकार:
मनु गुलाटी बताती हैं कि किस तरह दिल्ली की शिक्षा में बड़ा बदलाव आया है। उनके अनुसार, इस बात में कोई संदेह नहीं कि समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में किसी जवाबदेह सरकार की प्रमुख भूमिका होती है। सरकारों का काम महज बजट बनाना और शिक्षा पर खर्च का इंतजाम करना नहीं। विभिन्न स्तर पर नीतियों के निर्माण के जरिए शिक्षा का विकास करना भी एक बड़ा दायित्व है। इसके लिए शैक्षणिक संस्थाओं को समुचित संसाधन उपलब्ध कराना तथा स्वायत्त शक्तियां देना जरूरी हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसे ही क़दमों के जरिये स्कूलों में बड़ा बदलाव ला दिया है।
सरकारें बदलती रहेंगी, लेकिन स्कूलों के शिक्षक लंबे अरसे तक शैक्षिक व्यवस्था का अंग बने रहेंगे। उन्हें किस प्रकार के शैक्षणिक और प्रशासनिक दायित्व दिए जाते हैं, यह सरकारों और उनकी विचारधारा पर निर्भर करता है। दिल्ली की वर्तमान सरकार ने शिक्षा को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाया है। अपने मूल बजट का लगभग 20% से भी ज्यादा हिस्सा शिक्षा पर खर्च कर रही है दिल्ली सरकार।
इस तरह दिल्ली में सरकारी स्कूलों में दो स्तर पर बड़े बदलाव हुए-
1. अधिसंरचना के स्तर पर
2. प्रयास के स्तर पर
बड़ी संख्या में नए स्कूल भवन बनाए गए हैं। इनमें लैबोरेट्रीज हैं, स्मार्ट क्लासरूम हैं, लाइब्रेरी हैं, स्विमिंग पूल हैं, जिम हैं, और बच्चों के विकास की तमाम सुविधाएं हैं। एक ऐसा परिवेश बनाया गया है जिसमें शिक्षक, अभिभावक और स्टूडेंट्स, सब मिलकर साथ काम करें। परस्पर सहयोग से सीखने का अवसर दिया जा रहा है।
समुदाय की भागीदारी:
शिक्षा व्यवस्था के बदलाव में समुदाय को भी हिस्सेदार बनाया गया है। इसके लिए स्कूल प्रबंधन समितियों को मजबूत किया गया है। इसमें स्कूल के प्राचार्य, शिक्षक तथा बच्चों के अभिभावक होते हैं। चुनाव के जरिए इनका चयन होता है। अभिभावकों द्वारा स्कूल प्रबंधन समितियों में महत्वपूर्ण सुझाव दिए जाते हैं। मेगा पेरेंट्स टीचर मीटिंग का भी आयोजन होता है।
स्कूल प्रबंधन समितियों को महत्वपूर्ण प्रशासनिक दायित्व दिए गए हैं। हाल में दिल्ली सरकार ने प्रत्येक स्कूल को पांच लाख की राशि दी है। इसका स्कूल प्रबंधन समिति की सहमति से किसी भी प्रकार का उपयोग किया जा सकता है। इस फंड के माध्यम से शिक्षक या विशेष प्रशिक्षण का भी इंतजाम किया जा सकता है। फर्नीचर लाना हो या कोई अतिरिक्त लैब बनाना हो, इनमें भी इसका उपयोग हो सकता है। जिस स्कूल में बच्चों की संख्या ज्यादा हो, उनमें राशि बढ़ाई जा सकती है।
फुलब्राइट स्कॉलर:
वर्ष 2018 में फुलब्राइट स्कॉलरशिप के लिए चयनित छह शिक्षकों में मनु गुलाटी भी एक थीं। वह जनवरी से मार्च 2018 तक अमेरिका में रहीं। इन्हें अमेरिकन शैक्षणिक व्यवस्था से काफी कुछ सीखने का मौका मिला। शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल करने, विषय केंद्रित वर्कशॉप करने, शिक्षा विज्ञान से जुड़ी नई पहल करने, स्कूलों की विजिट तथा स्कूलों के कार्यक्रमों में सहभागिता के अवसर मिले।
विभिन्न देशो से आये हुए फुलब्राइट स्कॉलर के साथ मनु गुलाटी |
अमेरिका से लौटे शिक्षकों ने अलग-अलग विषयों पर भी विशेष प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। इन फुलब्राइट स्कॉलरों ने दिल्ली में सरकारी स्कूलों के 200 मेंटर शिक्षकों के साथ भी अपना अनुभव बांटा। ऐसे मेंटर शिक्षक दिल्ली के 50000 स्कूल शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।
हैप्पीनेस करिकुलम:
वर्तमान में हैप्पीनेस करिकुलम का निर्माण केजी से आठवीं कक्षा तक के लिए किया गया है। कम उम्र के स्टूडेंट्स की ज्यादा सीखने की क्षमता के अनुकूल विशेष कार्यक्रम बनाया गया है।
हैप्पीनेस करिकुलम के अंतर्गत ध्यान केंद्रित करने, मस्तिष्क पर विशेष जोर देने, ध्यान से सुनने, सावधानीपूर्वक सांस लेने जैसी चीजों ने बड़ा असर दिखाया है। इनसे बच्चों के प्रदर्शन पर अच्छा असर पड़ रहा है। इसके कारण उच्च कक्षाओं में भी इस पाठ्यक्रम को लागू करने की मांग आने लगी है। कहा जा रहा है कि हम स्कूल में जो कुछ भी सीखते हैं, वह जीवन भर हमारे साथ रहता है। इसलिए हैप्पीनेस भी हमारे साथ रहे।
शेयरिंग और लर्निंग:
दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा प्रणाली में काफी नवाचार लाया गया है। यह एक नियमित प्रक्रिया है। शोधकर्ताओं और शिक्षकों की एकेडमिक रिसर्च टीम है। वह विभिन्न देशों की गुड प्रैक्टिसेज का संकलन करके दिल्ली के बच्चों के अनुरूप प्रोग्राम तैयार कर रही है।
दिल्ली सरकार समग्र विकास पर भरोसा रखती है। वह दिल्ली की शिक्षा क्रांति को दिल्ली तक सीमित रखना नहीं चाहती। इसलिए सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, शिक्षकों तथा सरकारी अधिकारियों की एक टीम बनाई गई है, जो अन्य राज्यों के साथ अपने नॉलेज को शेयर करे। जल्द ही दिल्ली सरकार एक ऐसा ऑनलाइन वीडियो सीरीज बनाएगी जिसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के शिक्षण सामग्री को देशभर में उपयोग के लिए जारी किया जा सके।
दिल्ली की इस शिक्षा क्रांति ने बड़े बदलाव की उम्मीद जगाई है। यह मनु गुलाटी जैसी उन शख्सियतों के कारण संभव हुआ है, जिन्होंने हर चुनौती को सहज कबूल किया हो।
आप का रेडियो : 07 अक्टूबर को श्रीमती मनु गुलाटी से परिचर्चा पर आधारित
इस ब्लॉग के हिंदी अनुवाद के लिए डॉ विष्णु राजगढ़िया को बहुत बहुत धन्यवाद
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